मिलने की हुई थी हमारी वो बात
तुम भी चले थे हम भी चले
रास्ते में कुछ पत्थर ऐसे पड़े
कि मुलाकात का वो पल नहीं आता
पत्ते खिले , अब झड़ने लगे हैं
दुनिया में नए रंग खिलने लगे हैं
हमने भी खुद को समझा लिया है
मगर फिर भी वो कल नहीं आता
कहते थे सब हो जाएगा ठीक फिर से
चहकेंगे हम सब फैलेंगी खुशियां
बीत गयी इस इंतज़ार में कई नम रातें
मगर फिर भी वो कल नहीं आता
झगड़ लिए हम , नाराज़ हो लिए
मान जायेंगे कभी नाराज़गी दूर होगी
भरी रहती है आँखें आज भी
लेकिन अभी भी वो कल नहीं आता
ज़िद है तुम्हारी तो मैं भी कम नहीं
झुकने को कोई आगे नहीं आता
घुट घुट के कह लेते हैं खुद से
ये अंदर से हमारे गम नहीं जाता
वो कहते हैं बदलेगा सब कुछ
मगर कम्बख्त वो कल नहीं आता
(C) Deepanshu Pahuja
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