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Thursday, April 5, 2012

Jeevan


कल बगिया  में  देखा  था  एक  भंवरा मैंने 
शायद  नए  बूटे  में  फूल  निकल  आये  हैं 
मुझे  याद  है  आज  भी  वो  दिन 
जब  माली  ने  ये  बूटा  वहां  लगाया  था 
बड़े  प्यार  से  पानी  देकर  उसने  
उस छोटे से बूटे  को सहलाया  था 
मैं  भी  रोज़  देखता  था  इस  बूटे  को  बढ़ते  हुए 
माली  को  देखता  था  बूटे  से  अठ्केलियाँ  करते  हुए 
आज  देखो  ना उस  बूटे  में  नया  जीवन  खिल  आया  है 
माली  नहीं  है  वो  देखने  को  ये  जीवन  चक्र  की  कैसी  माया  है 
इस  सब  को  देख  कर  ये  बात  मेरी  भी  समझ  में  आई  है 
आना  जाना  यूँ   इस  दुनिया  में  जीवन  की  सच्चाई  है