IndiBlogger - The Largest Indian Blogger Community

Saturday, August 15, 2020

Wo kal nahi aata


मिलने  की  हुई  थी  हमारी  वो  बात 

तुम  भी  चले  थे  हम  भी  चले 

रास्ते  में  कुछ  पत्थर  ऐसे  पड़े  

कि  मुलाकात  का  वो  पल  नहीं  आता 

पत्ते  खिले , अब  झड़ने  लगे  हैं 

दुनिया  में  नए  रंग  खिलने  लगे  हैं 

हमने  भी  खुद  को  समझा  लिया  है  

मगर  फिर  भी  वो  कल  नहीं  आता 

कहते  थे  सब  हो  जाएगा  ठीक  फिर  से 

चहकेंगे  हम  सब  फैलेंगी  खुशियां 

बीत  गयी  इस  इंतज़ार  में  कई  नम  रातें  

मगर  फिर  भी  वो  कल  नहीं  आता 

झगड़  लिए  हम , नाराज़  हो  लिए 

मान  जायेंगे  कभी  नाराज़गी  दूर  होगी 

भरी  रहती  है  आँखें  आज  भी  

लेकिन  अभी  भी  वो  कल  नहीं  आता 

ज़िद  है  तुम्हारी  तो  मैं  भी  कम  नहीं 

झुकने  को  कोई  आगे  नहीं  आता 

घुट  घुट  के  कह  लेते  हैं  खुद  से 

ये  अंदर  से  हमारे  गम  नहीं  जाता 

वो  कहते  हैं  बदलेगा  सब  कुछ 

मगर  कम्बख्त  वो  कल  नहीं  आता


(C) Deepanshu Pahuja