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Monday, June 25, 2012

Zindagi ki kahaani


ज़िन्दगी  यूँ  बस  कुछ  लम्हों  की  मेहमान  होती  है 
फिर  भी  ये  लफ़्ज़ों  में  कहाँ  बयान  होती  है 
कह  ना पाया  इसकी  कहानी  कभी  भी  कोई 
फिर  भी  हर  नग्मे की  बस  यही  जान  होती  है 
कभी  दर्रों  सी  गहरी  है  झलक इसकी  
कभी  उथले  पानी  में  हिलती  परछाई  है 
कभी  फूलों  की  खुशबु  से  महकती  बगिया  है  ये 
कभी  भीगी  पलकों  की  नम  सी  तन्हाई  है 
कशमकश  से  भरा  लम्बा  सफ़र  है  ये  एक 
चल  के  इस  रास्ते पे  सबको  अपनी  दास्ताँ  बनानी  है 
समझ  ना  पाया  है  तो  इसको  कैसे  कहे  कोई 
पर  सब  कहते  है  ये  ज़िन्दगी  एक  कहानी  है

(C) Deepanshu Pahuja

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