ज़िन्दगी यूँ बस कुछ लम्हों की मेहमान होती है
फिर भी ये लफ़्ज़ों में कहाँ बयान होती है
कह ना पाया इसकी कहानी कभी भी कोई
फिर भी हर नग्मे की बस यही जान होती है
कभी दर्रों सी गहरी है झलक इसकी
कभी उथले पानी में हिलती परछाई है
कभी फूलों की खुशबु से महकती बगिया है ये
कभी भीगी पलकों की नम सी तन्हाई है
कशमकश से भरा लम्बा सफ़र है ये एक
चल के इस रास्ते पे सबको अपनी दास्ताँ बनानी है
समझ ना पाया है तो इसको कैसे कहे कोई
पर सब कहते है ये ज़िन्दगी एक कहानी है
(C) Deepanshu Pahuja
(C) Deepanshu Pahuja
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