वो गुज़रे मेरी राह से यूँ अजनबी बनकर
देख कर भी हमको वो अनदेखा कर गए
मिले फिर वो हमसे महफ़िल में दोस्त की
मुंह फेर कर उस भीड़ में रुसवा सा कर गए
मुस्कुराये हमारे दर्द पे वो कुछ इस तरह से
अश्कों से हमारे वो अपना जाम भर गए
इस बेरुखी की आदत नहीं थी हमें उनकी
दीवानगी हमारी इस कदर उन पे है
वो जब नज़र आये हमें और किसी के साथ
टूट कर हम कांच की तरह बिखर गए
मिलेंगे अगली बार वो जब फिर किसी मोड़ पर
हो सकता है बेआबरू वो फिर करें हमको
हम फिर से मुस्कुरा देंगे उन्हें देखकर यूँ ही
परवाने है जलने की हमको आदत सी पढ़ गयी
(C) DEEPANSHU PAHUJA
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