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Tuesday, July 23, 2013

paigaam


चल पड़े हैं इस राह पे 
जिस का कोई मुकाम नहीं 
ढूंदते  हैं वो मंजिल 
जिसका के कोई नाम नहीं 
एक  साथी है शायद जो 
साथ दे सके दूर तक 
वापिस अगर मुड़ जाये वो 
तो बेवफाई का इलज़ाम नहीं 
मेरे सपने मेरी नज़र मेरी मंजिल 
जब तक मिले न मुझे बस अब आराम नहीं 
तेरे साथ के एहसास की तपिश में 
बस चलते रहना है और कोई काम नहीं 
एक राह तुम चले हो अब 
हमें यूँ अकेला छोड़ कर 
शायद मिट जाएँ किसी मोड़ पर ये
फासले दोनों के दरमियान जो हैं 
हम सदा ढूंदा करेंगे तुमको हर मोड़ पर 
बस अब तुम्हारे लिए हमारा पैगाम यही 

(C) Deepanshu Pahuja

4 comments:

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